पवन दूतिका का सारांश। पवन दूतिका का व्याख्या व सारांश ।

 खड़बोली हिन्दी में सर्वप्रथम महाकाव्य की रचना करने वाले बहुमुखी प्रतिभा के धनी हरिऔधजी के सुप्रसिद्ध महाकाव्य 

पवन दूतिका का सारांश कुछ इस प्रकार है--


'प्रियप्रवास' से प्रस्तुत काव्यांश उद्धृत है। इसमें वियोगिनी राधा के प्रेम की मार्मिक व्यंजना हुई है। यहाँ राधा ने पवन को दूती बनाकर कृष्ण के पास भेजा है। इसमें एक ओर जहाँ राधा के उदात्त चरित्र की झाँकी मिलती है, वहीं दूसरी ओर कृष्ण के समीप अपनी विरहावस्था को प्रकट करने के लिए सटीक उपमान-विधानों का प्रयोग-वैशिष्टय भी देखने योग्य है। हरिऔधजी ने राधा को लोक-सेविका, सहानुभूतिशील परदुःखकातर नायिका के रूप में चित्रित करते हुए उनके परम्परागत स्वरूप में मौलिक परिवर्तन कर किया है।


वस्तुतः हरिऔधजी का 'प्रियप्रवास' उनकी विलक्षण काव्य-प्रतिभा का परिचायक है। प्रायः हरिऔधजी के काव्यों में पौराणिक पात्र अपने परम्परागत स्वरूप को त्यागकर एक नवीन स्वरूप में दृष्टिगोचर होते हैं। 'प्रियप्रवास' की राधा भी एक ऐसी ही पात्र है।


हरिऔधजी की राधा कर्त्तव्यनिष्ठ हैं, जिनके जीवन का लक्ष्य लोकसेवा है। 'प्रियप्रवास' में राधा की जिस छवि का चित्रण हुआ है, वह उनकी परम्परागत छवि से भिन्न है। हरिऔधजी की राधा मात्र प्रेमातुर नायिका नहीं हैं, अपितु वे एक भारतीय नारी का आदर्श स्वरूप हैं, जिसमें कोमलता, भावुकता, दया, करुणा, सेवा आदि का भाव भरा हुआ है। 'पवन-दूतिका' शीर्षक के अन्तर्गत उनकी उदात्त भावनाओं का चित्रण हुआ है।।

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